जयहिंद दोस्तो,
आज सुबह तक मैं भी आपकी तरह
आजादी का दीवाना था।
अचानक, जाने क्यों,
मेरे मुँह से बड़े जोर से नारा निकला,
"अंग्रेजो, भारत छोड़ो!"
तभी, रसोई से 'अंग्रेजो' ने बेलन छोड़ दिया।
वो सीधा मेरी दाईं आँख पर आकर लगा और
तारे टूटने लगे।
मेरी आत्मा से चीख निकली, "हे, माँ!"
माँ भागी मेरे बापू के पास,
"देखो तो, बहू ने पीट दिया बेटे को"
बापू भागता आया और
सीधा लट्ठ जड़ा मेरी कोहनी पे,
"शर्म कर, डूब मर। लुगाई से पिटता है।"
मेरे सूजे हुए मुँह से बस इतनी ही आवाज आई,
"इन्कलाब ज़िंदाबाद, 'अंग्रेजो' ने किया बर्बाद"।
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मुसाफ़िर
'अंग्रेजो': (मर्म)पत्नी का नाम
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