हरयाणवी

1. आज मनै मर लेण दयो रै 

एक सत्तर साल के बुजुर्ग किसान नै खेती के कर्ज की चिंता मै सपरा पी लिया, अर ओ इब हस्पताल मै जिंदगी-मौत की लड़ाई लडण लाग रया है। ICU मै उस अनबोल अर तड़फदे माणस के हालत देख कै, उसके मन की बात लिखण की कोशिश करी है मनै। 
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दुख आवे सै मनै बहोत घणा, फेटण आवे जब जणा- जणा,
कोए ना आओ मेरै धोरे, मेरी आँख्यां के आँसू मर लेण दयो रै। 
पेट के घा बेशक ना भरैं, पर मेरी छाती के घा भर लेण दयो रै। 
रै भाईयो, आज मनै मर लेण दयो रै। 

हाथां मैं सुई, मुँह मै नाळ अर नासां मैं नाली, सारा थूक सूख ग्या मेरा,
बीड़ी के फुक्के इन फेफ्ड़याँ नै, दो-चार साँस, आपे भर लेण दयो रै,
मेरे पेशाब मैं भी आवे खून, न्यू टोपा-टोपा मरण तै आच्छा,
एक झटके मैं मनै झर लेण दयो रै,
रै डॉक्टर, आज मनै मर लेण दयो रै।

दस दिनां तै, मेरा गात यो, कतई पत्थर सा हो रया सै,
खोल दयो मेरे हाथ-पाँ, हाथळ मैस की भूखी मरदी काटड़ी कै,
बस एक जाफी मनै भर लेण दयो रै,
रै घर-बैरण, आज मनै मर लेण दयो रै। 

कर्ज तलै दबे किसान का, तब के साहरा रह जया सै,
म्हारा नाज खांण आला अफसर, सबकै स्याहमी चोर कह जया सै,
बाही, बुआई, दुआई, आढ़त, अर मौसम के मारे, हाळी धोरे के रह जया सै,
रै पापियो, थाम मेरा यू पहला पाप, आज मनै कर लेण दयो रै,
आज मनै मर लेण दयो रै। 

भात भरे, वाणे करे, घर बसाया, बेटी ब्याही, इब और के करवाओगे,
सत्तर साल खेत बाह लिया, इब और कितनी कस्सी चलवाओगे,
मेरे मुसे -तुसे इस गात ने, आखरी अँगडाई भर लेण दयो रै। 
रै बेटे, आज मनै मर लेण दयो रै। 
आज मनै मर लेण दयो रै।।
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कलम: 
अजय चहल मुसाफ़िर 
चेन्नई, भारत
 
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