शुक्रवार, 3 मार्च 2017

कहो हसीना

तेरी सुनहरी आँखें, दिलकश बातें, मुझे बहलाये,
मीठे बोल, ज्यों मिश्री का घोल, तू मुझे पिलाये,
तो फिर, कहो हसीना,
मेरा दिल तुझ पे, क्यों ना आये ।।

राज़ दिलों के कहते कहते, जब चुप हो जाये,
मालूम है मुझको, कम बताये और ज्यादा छुपाये,
मुस्कुराती नज़र और संभलती ज़ुबां, लंबे रिश्ते निभाये,
तो फिर, कहो हसीना,
मेरा दिल तुझ पे, क्यों ना आये ।।

सिर्फ़ हुस्न नहीं, तेरी अकलमंदी ने भी, हैं किस्से बनाये,
तेरे मासूम सवाल, कर दें बवाल, चतुरजन ठिकाने लगाये,
ये भोलापन, ये सादगी, हैं तेरे असली गहने, पर फिर भी,
चमकीले झूमकों की तारीफ़, तेरे गालों पे रंग ले आये,
तो फिर, कहो हसीना,
मेरा दिल तुझ पे, क्यों ना आये ।।

जब मुश्किल थी घड़ी, थी तू मेरे पास खड़ी,
बेगानों के दौर में, तूने अपनों के चेहरे दिखाये,
हाथ छुड़ाने की रस्में थी हावी, पर तूने मुझ संग कदम मिलाये,
पल-पल में बिखरी खुशियों को, तू चुनना सिखाये,
तो फिर, कहो हसीना,
मेरा दिल तुझ पे, क्यों ना आये ।
मेरा दिल तुझ पे, क्यों ना आये ।।

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Dedicated to our 9th Anniversary of togetherness (to-get-her-ness) !!
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Listen it here:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/kaho-haseena
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
चेन्नई, भारत




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