वो कहते हैं, कि क्या हम कहें,
कुछ भी तो कहने को नहीं है;
मगर पास उनके,
कोई वजह चुप रहने को भी नहीं है ।।
सो कुछ भी कहते नहीं,
और चुप भी रहते नहीं ।।
पर उनकी हंसी बड़ी गुस्ताख़ है;
उनकी तरह छुपाती नहीं,
कह देती हर बात है ।।
अब उलझन ये है,
कि उनको भी नहीं पता,
वो क्या कहना चाहते हैं।
पर इतना ख्याल जरूर है उन्हें,
वो क्या छुपाना चाहते हैं ।।
जाने ये बात, वो क्यूँ नहीं जानते,
कि बेजुबां नहीं होते कभी, बंद लब,
दिल की बात, मुस्कान कह देती है सब ।
लाख संभालें, सँभालने वाले,
आँखें हमेशा कह देती हैं, हर बात,
क्योंकि, लबों से बेहतर जानती हैं वो,
तेरे बेचैन दिल के हालात ।।
इसलिए कोशिश ना कर, कुछ ना कहने की,
फितरत नहीं तेरी, चुप रहने की ।
कुछ कहा कर, सब सुना कर,
दिल की बातों को तू गुना कर ।।
'मुसाफ़िर' की इतनी बात जान ले,
खुद को जरा पहचान ले;
नहीं कभी खुश रहेगा,
गर दिल तेरा चुप रहेगा ।।
बस इतना सा है स्वास्थ्य,
थोड़ा बेबाकपन और हास्य ।।
------
लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
8 सितम्बर 2016
चेन्नई, भारत
कुछ भी तो कहने को नहीं है;
मगर पास उनके,
कोई वजह चुप रहने को भी नहीं है ।।
सो कुछ भी कहते नहीं,
और चुप भी रहते नहीं ।।
पर उनकी हंसी बड़ी गुस्ताख़ है;
उनकी तरह छुपाती नहीं,
कह देती हर बात है ।।
अब उलझन ये है,
कि उनको भी नहीं पता,
वो क्या कहना चाहते हैं।
पर इतना ख्याल जरूर है उन्हें,
वो क्या छुपाना चाहते हैं ।।
जाने ये बात, वो क्यूँ नहीं जानते,
कि बेजुबां नहीं होते कभी, बंद लब,
दिल की बात, मुस्कान कह देती है सब ।
लाख संभालें, सँभालने वाले,
आँखें हमेशा कह देती हैं, हर बात,
क्योंकि, लबों से बेहतर जानती हैं वो,
तेरे बेचैन दिल के हालात ।।
इसलिए कोशिश ना कर, कुछ ना कहने की,
फितरत नहीं तेरी, चुप रहने की ।
कुछ कहा कर, सब सुना कर,
दिल की बातों को तू गुना कर ।।
'मुसाफ़िर' की इतनी बात जान ले,
खुद को जरा पहचान ले;
नहीं कभी खुश रहेगा,
गर दिल तेरा चुप रहेगा ।।
बस इतना सा है स्वास्थ्य,
थोड़ा बेबाकपन और हास्य ।।
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लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
8 सितम्बर 2016
चेन्नई, भारत
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