था वो किनारा समुन्दर का ;
पर लगा नज़ारा मेरे अंदर का, तेरे अंदर का I I
जितनी नज़र, बस उतनी खबर;
ना और पता समुन्दर का ,
ना और पता मेरे अंदर का, तेरे अंदर का I
बेचैन लहरें वो समुन्दर की ;
लगी मुझे मेरे अंदर की ,तेरे अंदर की I
एक पल को बढती , दूजे पल को घटती;
जैसे थी तमन्ना मेरे अंदर की , तेरे अंदर की I
आगे बढ़ी तो सब कुछ पास , पीछे हटी तो फिर खाली हाथ;
है यही नज़ारा मेरे अंदर का ,तेरे अंदर का I
था वो किनारा समुन्दर का ;
पर लगा नज़ारा मेरे अंदर का, तेरे अंदर का I I
वहां मैंने कुछ लकीरें खींची ,तो मुस्कुरा उठा तेरा चेहरा ,
मुस्कुराने लगा मैं जो देख तुझे ,
तोड़ मेरी आँखों का पहरा ,पहुंचा वहां किनारा समुन्दर का I
पर नहीं बदला नज़ारा मेरे अंदर का ,
रुख जो हो चुका था तेरे अंदर का ,मेरे अंदर का I I
है अथाह गहरा, अकूत आबाद ,
पर है इक किनारा, समुन्दर का I
चाहे कितना भी हो पास , पर फिर भी बेदम भूख ;
शायद नहीं किनारा मेरे अंदर का ,
शायद नहीं किनारा तेरे अंदर का I I
था वो किनारा समुन्दर का ;
पर लगा नज़ारा मेरे अंदर का, तेरे अंदर का I I
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https://soundcloud.com/ajay-chahal/kinara-samundar-ka-ajay-chahal-at-air-chennai
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(Youtube video link)
(Recorded at All India Radio, Chennai)
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लेखनी - अजय चहल 'मुसाफ़िर'
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