सोमवार, 21 नवंबर 2011

किनारा - समुन्दर का


था वो  किनारा समुन्दर का ;
पर  लगा नज़ारा मेरे अंदर का,  तेरे अंदर का I I

जितनी नज़र, बस उतनी खबर;
ना और पता समुन्दर का ,
ना और पता मेरे अंदर का, तेरे अंदर का I

बेचैन लहरें वो समुन्दर की ;
लगी मुझे मेरे अंदर की ,तेरे अंदर  की I

 एक पल को बढती , दूजे पल को घटती;
जैसे थी तमन्ना मेरे अंदर की , तेरे अंदर  की I

आगे बढ़ी तो सब कुछ पास , पीछे  हटी तो फिर खाली हाथ;
है  यही नज़ारा मेरे अंदर  का ,तेरे अंदर का I

था वो  किनारा समुन्दर का ;
पर  लगा नज़ारा मेरे अंदर का,  तेरे अंदर का I I

वहां मैंने कुछ लकीरें खींची ,तो मुस्कुरा उठा तेरा चेहरा ,
मुस्कुराने लगा मैं जो देख तुझे ,
तोड़ मेरी आँखों का पहरा ,पहुंचा वहां किनारा समुन्दर का I
पर नहीं बदला नज़ारा मेरे अंदर का ,
रुख जो हो चुका था तेरे अंदर का ,मेरे अंदर का I I

है अथाह  गहरा, अकूत आबाद ,
पर है इक किनारा, समुन्दर का I
चाहे कितना भी हो पास , पर फिर भी बेदम भूख ;
शायद नहीं किनारा मेरे अंदर का ,
शायद  नहीं किनारा तेरे अंदर का I I

था वो  किनारा समुन्दर का ;
पर  लगा नज़ारा मेरे अंदर का,  तेरे अंदर का I I

---------------
Listen it here:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/kinara-samundar-ka-ajay-chahal-at-air-chennai 
-------------------
(Youtube video link)
(Recorded at All India Radio, Chennai)
-----  
लेखनी - अजय चहल 'मुसाफ़िर'


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें