आज मन खाली है, या कहूँ,
कि थोड़ा ख़्याली है।
उन खुशनुमा हवाओं का हाल कहूँ,
या ना गुजरी शब का वो सवाल कहूँ,
तेरे हूबहू, उस क़मर की चाल कहूँ,
या तेरा कभी ना आने का मलाल कहूँ।
आज मन खाली है, या कहूँ,
कि थोड़ा ख़्याली है।
सब्ज़ ना हो सके जो हाथ, मेरे नाम की मेहंदी से,
अब तुम्हीं कहो, उन्हें हिना से, या मेरे लहू से लाल कहूँ,
जिसमें कैद हैं, मेरी धड़कनें अब तक,
क्यों ना तेरे उस आग़ोश को, मेरी रूह का ज़ाल कहूँ?
आज मन खाली है, या कहूँ,
कि थोड़ा ख़्याली है।।
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शब - रात, क़मर - चाँद, सब्ज़ - हरा रंग
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Urdu version can be read here:
https://musaafiraana.blogspot.in/2018/03/blog-post.html
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
भारत
कि थोड़ा ख़्याली है।
उन खुशनुमा हवाओं का हाल कहूँ,
या ना गुजरी शब का वो सवाल कहूँ,
तेरे हूबहू, उस क़मर की चाल कहूँ,
या तेरा कभी ना आने का मलाल कहूँ।
आज मन खाली है, या कहूँ,
कि थोड़ा ख़्याली है।
सब्ज़ ना हो सके जो हाथ, मेरे नाम की मेहंदी से,
अब तुम्हीं कहो, उन्हें हिना से, या मेरे लहू से लाल कहूँ,
जिसमें कैद हैं, मेरी धड़कनें अब तक,
क्यों ना तेरे उस आग़ोश को, मेरी रूह का ज़ाल कहूँ?
आज मन खाली है, या कहूँ,
कि थोड़ा ख़्याली है।।
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शब - रात, क़मर - चाँद, सब्ज़ - हरा रंग
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
भारत
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