मेरा पहला प्यार था, मेरी माँ,
जो आज भी परिभाषा है, मेरे शरीर की,
जिसने, ना केवल शब्द से परिचय कराया,
सिखायी भी उसने, कहनी बातें ज़मीर की ।।
मेरा आखिरी प्यार है, मेरी पत्नी,
संतान देकर वैधता बढ़ाई, इस नश्वर शरीर की,
ना केवल हर शब्द की कीमत बताई,
सिखायी भी उसने, समझनी बातें जमीर की ।।
माना मोहब्बत में मुश्किल नहीं, पर आसां भी नहीं,
दिनभर की मशक्कत के बाद, रातों की नींद टालना,
जरा सी सिसकी पे, वो हिलाती रही मेरा पालना,
मेरी रफ़्तार के सपने थे, उसकी आँखों में,
सीख रहा था मैं जब, पहला कदम संभालना ।।
कुछ ख्याल बस खुशनुमा लगते हैं, पर वो होते नहीं,
जैसे, उसका अंदाज-ऐ-अलविदा,
मुस्काती है वो, पर मैं कैसे मानूँ, नैन उसके रोते नहीं ।
वो ढूंढती है मुझमें, उसका पहला नायक, उसका पिता,
पूरा है उसका संसार यहाँ, पर अधूरी देखा है मैंने उसे,
जब भी पुकारता है वो साया, "कुछ दिन मेरे संग बिता" ।।
कुछ जिद्दें बड़ी खूंखार होती हैं और एकदम पक्की भी,
बोली, "मेरे जोड़, साथ रहे हैं छोड़", एक सहेली ला दे,
मैं दौड़ गया, पर सवाल जिन्दा छोड़ गया,
देखा, उस रोज़, दाँत ही नहीं, वो पीसती रही चक्की भी ।।
लाया था मैं उसकी सहेली, पर उनका रिश्ता है एक पहेली,
मोहब्बत तो है दोनों और से, पर उलझन है शोर से,
बंटवारा ना हो, मेरे दिल के टूकड़ों का, गर,
दुरुस्त रहे पहली मोहब्बत और आखिरी रहे नयी नवेली ।।
सुना है, कोई कभी नहीं भूलता, अपने किसी भी प्यार को,
टूटती सांसों से कहीं, लगाव ना हो जाये इंतज़ार को,
इसलिये ज़ारी रख, मुसाफ़िर,
सत्कार पहले प्यार को और इज़हार आखिरी प्यार को ।।
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Video Link:
YouTube: पहला और आखरी प्यार - अजय चहल
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लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
17 अक्टूबर 2016
चेन्नई, भारत
जो आज भी परिभाषा है, मेरे शरीर की,
जिसने, ना केवल शब्द से परिचय कराया,
सिखायी भी उसने, कहनी बातें ज़मीर की ।।
मेरा आखिरी प्यार है, मेरी पत्नी,
संतान देकर वैधता बढ़ाई, इस नश्वर शरीर की,
ना केवल हर शब्द की कीमत बताई,
सिखायी भी उसने, समझनी बातें जमीर की ।।
माना मोहब्बत में मुश्किल नहीं, पर आसां भी नहीं,
दिनभर की मशक्कत के बाद, रातों की नींद टालना,
जरा सी सिसकी पे, वो हिलाती रही मेरा पालना,
मेरी रफ़्तार के सपने थे, उसकी आँखों में,
सीख रहा था मैं जब, पहला कदम संभालना ।।
कुछ ख्याल बस खुशनुमा लगते हैं, पर वो होते नहीं,
जैसे, उसका अंदाज-ऐ-अलविदा,
मुस्काती है वो, पर मैं कैसे मानूँ, नैन उसके रोते नहीं ।
वो ढूंढती है मुझमें, उसका पहला नायक, उसका पिता,
पूरा है उसका संसार यहाँ, पर अधूरी देखा है मैंने उसे,
जब भी पुकारता है वो साया, "कुछ दिन मेरे संग बिता" ।।
कुछ जिद्दें बड़ी खूंखार होती हैं और एकदम पक्की भी,
बोली, "मेरे जोड़, साथ रहे हैं छोड़", एक सहेली ला दे,
मैं दौड़ गया, पर सवाल जिन्दा छोड़ गया,
देखा, उस रोज़, दाँत ही नहीं, वो पीसती रही चक्की भी ।।
लाया था मैं उसकी सहेली, पर उनका रिश्ता है एक पहेली,
मोहब्बत तो है दोनों और से, पर उलझन है शोर से,
बंटवारा ना हो, मेरे दिल के टूकड़ों का, गर,
दुरुस्त रहे पहली मोहब्बत और आखिरी रहे नयी नवेली ।।
सुना है, कोई कभी नहीं भूलता, अपने किसी भी प्यार को,
टूटती सांसों से कहीं, लगाव ना हो जाये इंतज़ार को,
इसलिये ज़ारी रख, मुसाफ़िर,
सत्कार पहले प्यार को और इज़हार आखिरी प्यार को ।।
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Video Link:
YouTube: पहला और आखरी प्यार - अजय चहल
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लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
17 अक्टूबर 2016
चेन्नई, भारत
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