मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

ये दिन


ये दिन, बिल्कुल ऐसा ही दिन है,
बाद जिसके, उस दिन सी कोई बात ना रही।।

कुछ लम्हों की वो गुंजाइश,
बाद जिसके, उस जैसी कोई मुलाकात ना रही।

हम, तुम ने महफ़िलें देखी होंगी बहुत,
पर बाद उसके, उस जैसी कोई जमात ना रही।

कुछ अधूरा सा है, इस दिल की ख़्वाईशों में,
शायद, उस दिन से कुछ धड़कनें इसके साथ ना रही।

ज़माने की रफ़्तार, लील देती है सब,
तेरे ख़्वाबों की स्याही, अब इस क़लम के साथ ना रही।

कट जायेगी उम्र, वक़्त के हिसाब से,
क्या हुआ, गर उस दिन सी अब कोई आस ना रही।

ये दिन, बिल्कुल ऐसा ही दिन है,
बाद जिसके, उस दिन सी कोई बात ना रही।।

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लेखनी-
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
भारत

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