कश्मीर हमारा है और
कश्मीरी भी हमारे हैं;
अमन के दुश्मन उन्हें तुम
जानो,
जो बता रहे हमें न्यारे हैं।
भले एक ने पहनी फेरन (कश्मीरी
लिबास),
और दूसरा है वर्दी में;
बेटे दोनों भारत माँ को, अपनी
जान से भी प्यारे हैं।
हो रहा ये हंगामा क्यों, क्यूँ
है तांडव यूँ मच रहा;
कब होगी बंद बोली लगनी, पत्थर
लिए इन हाथों की;
उन होनहार और बेकसूर
बेटों की,
चिंता में हमवतन सारे
हैं।
मत आना बहकावे में, उन
घात लगाये गिद्दों की;
मुश्किल की इन घड़ियों
में,
कुछ मीठे बोल और नम आँखों के सहारे हैं।
बहुत कोशिश की उस जलजले
ने,
उम्मीदें हमारी डुबाने की;
हाथ बढ़ा हर हिन्दुस्तानी
का,
तो फिर आबाद, डल के किनारे हैं।
मत मानो, इक तरफ़ा है ये
रिश्ता, इस सरजमीं से;
उम्मीद है तुमसे हमें
जितनी,
उतने ही हम पर हक तुम्हारे हैं।
उनकी तरह दुश्मनी गर
निभाते हम,
तो लाहौर की गलियाँ ना
रहती यूँ आबाद;
गिने ना जाते उनसे जख्म,
गर हम इरादा करते,
शुक्र करो, कि हम मोहब्बत के मारे हैं।
लो सुन लो आज तुम,
इस वतनपरस्त ‘मुसाफ़िर’ की जुबां;
इस वतनपरस्त ‘मुसाफ़िर’ की जुबां;
कलियों की खूशबू तो है
ही,
महकते इस चमन के, सब
फूल भी हमारे हैं;
याद रहे,
कश्मीर तो है ही,
LoC के दोनों और के,
कश्मीरी भी हमारे हैं।।
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जय हिन्द !! भारत माता की
जय !!
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लेखनी: अजय चहल ‘मुसाफ़िर’
लेखनी: अजय चहल ‘मुसाफ़िर’
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