मैंने कहा, 'ख़ूबसूरत',
तो सबको बस, याद वो बचपन आता है,
जिसे, ना कोई दिल कभी भुलाता है ।
वो कांच की गोलियाँ, मस्तानों की टोलियाँ,
और पत्थरों को समेटती झोलियाँ,
याद करने को जिन्हें, बड़ा जी चाहता है।
पर रफ़्तार पकड़ती जिन्दगी में,
जाने क्यूँ, वो बच्चा कहीं गुम सा हो जाता है।।
तो सबको बस, याद वो बचपन आता है,
जिसे, ना कोई दिल कभी भुलाता है ।
वो कांच की गोलियाँ, मस्तानों की टोलियाँ,
और पत्थरों को समेटती झोलियाँ,
याद करने को जिन्हें, बड़ा जी चाहता है।
पर रफ़्तार पकड़ती जिन्दगी में,
जाने क्यूँ, वो बच्चा कहीं गुम सा हो जाता है।।
मैंने कहा, 'ख़ूबसूरत',
तो शायद, याद उन्हें थी आई जवानी,
नखरे वो सारे, जिनकी थी कभी, दुनिया दीवानी।
उनकी बेबाक हंसी और बोलती मुस्कानें,
जिनकी शिकार बनी थी, जाने कितनी जानें।
पर यकीन उन्हें आज भी नहीं,
पूछ रहे थे मुझसे ही, नाम उन किरदारों के,
जिनकी कभी, ख़ुद ही लिखी थी कहानी ।
और भला क्या कहता मैं,
कहा मैंने,
"पूछो एक बार तो, अपने भी दिल से भला,
ताल मिलाकर संग तुम्हारे, कौन कितने क़दम चला।"
शायद, दुनियादारी और इसकी जिम्मेदारी,
रंग सब छीन लेती है,
भोले चेहरे और मासूम दिलों के बदले में,
चिरस्थायी और गुमसुम सी, समझदारी क्यूँ देती है।।
तो शायद, याद उन्हें थी आई जवानी,
नखरे वो सारे, जिनकी थी कभी, दुनिया दीवानी।
उनकी बेबाक हंसी और बोलती मुस्कानें,
जिनकी शिकार बनी थी, जाने कितनी जानें।
पर यकीन उन्हें आज भी नहीं,
पूछ रहे थे मुझसे ही, नाम उन किरदारों के,
जिनकी कभी, ख़ुद ही लिखी थी कहानी ।
और भला क्या कहता मैं,
कहा मैंने,
"पूछो एक बार तो, अपने भी दिल से भला,
ताल मिलाकर संग तुम्हारे, कौन कितने क़दम चला।"
शायद, दुनियादारी और इसकी जिम्मेदारी,
रंग सब छीन लेती है,
भोले चेहरे और मासूम दिलों के बदले में,
चिरस्थायी और गुमसुम सी, समझदारी क्यूँ देती है।।
मैंने कहा, 'ख़ूबसूरत',
तो याद वो पल आते हैं,
भूल कर भी जो, कभी ना भूलाये जाते हैं।
महफ़िल वो यारों की,
बैठक और चुबारों की।
जिक्र उन दास्तानों का, फिक्र उनके बहानों का,
क्या कहें उन जमानों का, भरोसा उन अनजानों का ||
हैरान हूँ, क्यूँ छूट गये, जो हाथ बड़े मजबूत थे,
महफ़िल से क्यूँ उठ गये, जो मेरे साये के सबूत थे।
साथ बैठ जो हँसते थे और हुनर भी जिनके सस्ते थे,
क्यूँ जता रहे थे आज हमें, ऊँचा रेट अपनी दुकानों का,
शायद उम्र से भी भारी है, भरम बड़े मकानों का।।
तो याद वो पल आते हैं,
भूल कर भी जो, कभी ना भूलाये जाते हैं।
महफ़िल वो यारों की,
बैठक और चुबारों की।
जिक्र उन दास्तानों का, फिक्र उनके बहानों का,
क्या कहें उन जमानों का, भरोसा उन अनजानों का ||
हैरान हूँ, क्यूँ छूट गये, जो हाथ बड़े मजबूत थे,
महफ़िल से क्यूँ उठ गये, जो मेरे साये के सबूत थे।
साथ बैठ जो हँसते थे और हुनर भी जिनके सस्ते थे,
क्यूँ जता रहे थे आज हमें, ऊँचा रेट अपनी दुकानों का,
शायद उम्र से भी भारी है, भरम बड़े मकानों का।।
मैंने कहा, 'खूबसूरत',
तो हँसी उनके लबों पे थी,
"क्या-क्या करूँ, मैं अब याद,
याद ना रहती, अब कोई बात।"
इतना कह के वो चुप हो गये,
सारी गुजर गई, पर जाने किधर गई,
बीते कल की उस भूलभुलिया में खो गये।।
मैंने जो हाथ छुआ, तो लबालब हुई उनकी आँखें,
बोले, "सुनो बेटा",
"जिन्दगी भर बस दौड़ थी,
भूख थी और होड़ थी।"
इक पल को भी ना खुद को संभाला।
अब सोचता हूँ, क्यूँ इतना कमाया,
ताउम्र जिनका रहा, उन्हीं ने अब किया पराया,
दोष किसी को क्या दूं, जो छोड़ रही है साथ अब काया।
काश मेरा दिल बच्चा ही रहता,
तो आज तुमसे ये ना कहता,
जो सुन्दर था, सब मेरे अन्दर था, फिर क्यूँ छोड़ा मैंने,
जाने खुद के ही कितने सपनों को तोड़ा मैंने।
हर दम, हर पल, धुक-धुक रही, चारों और बस शोर था,
बस इतना सा गम है 'मुसाफ़िर',
"जा रहा हूँ कोई और बनकर,
पर आया मैं कोई और था ।।"
------------
Watch the video on youtube (click on the link):
https://goo.gl/bza5m3
For audio only, click the link below:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/khoobsoorat
तो हँसी उनके लबों पे थी,
"क्या-क्या करूँ, मैं अब याद,
याद ना रहती, अब कोई बात।"
इतना कह के वो चुप हो गये,
सारी गुजर गई, पर जाने किधर गई,
बीते कल की उस भूलभुलिया में खो गये।।
मैंने जो हाथ छुआ, तो लबालब हुई उनकी आँखें,
बोले, "सुनो बेटा",
"जिन्दगी भर बस दौड़ थी,
भूख थी और होड़ थी।"
इक पल को भी ना खुद को संभाला।
अब सोचता हूँ, क्यूँ इतना कमाया,
ताउम्र जिनका रहा, उन्हीं ने अब किया पराया,
दोष किसी को क्या दूं, जो छोड़ रही है साथ अब काया।
काश मेरा दिल बच्चा ही रहता,
तो आज तुमसे ये ना कहता,
जो सुन्दर था, सब मेरे अन्दर था, फिर क्यूँ छोड़ा मैंने,
जाने खुद के ही कितने सपनों को तोड़ा मैंने।
हर दम, हर पल, धुक-धुक रही, चारों और बस शोर था,
बस इतना सा गम है 'मुसाफ़िर',
"जा रहा हूँ कोई और बनकर,
पर आया मैं कोई और था ।।"
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