सोमवार, 11 मार्च 2019

अब मैं नहीं

गम ना करो, कि अब मैं नहीं,
आँखों से हूँ ओझल तो,
ढूँढो मुझे, अपने दिल में कहीं।

निश्चित हुआ था मेरा जाना,
जिस दिन हुआ था मेरा आना।
 
मैं नहीं, तो क्या? अब रहेंगे मेरे किस्से,
देखो खुद को छू कर जरा,
तुम में भी तो हैं, मेरे ही जिस्म के हिस्से।

मैंने क्या खोया और क्या पाया,
ये सवाल बड़ा है बेमाना,
बस सफ़र किया और असर किया,
खाली हाथ थे जब आये मुसाफ़िर,
तो खाली हाथ ही है जाना।

सिर्फ शरीर नहीं है, जीवन की निशानी,
ज्यूँ हिमालय कहे, उस सिन्धु की कहानी,
जिन्दा दिलों को है, रखता याद जमाना,
असल मौत तो है, सपनों का मर जाना।

गम ना करो, कि अब मैं नहीं,
मैं हूँ यहीं, तेरे दिल में कहीं।।
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लेखनी:
अजय चहल मुसाफ़िर
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श्रीमती फूलपति सिन्धु को समर्पित।


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