दिल कहता है, कह दूं तुम्हें, कुछ ऐसा,
महसूस मेरी धड़कन को तू करे, अपने जैसा ।।
इक शब्द भी ना लगे, ये सब कहने में,
सुकून मिले मुझे बस, तेरे पास रहने में ।।
तुम भी कहो, ना कुछ, तो भी मैं समझूँ सब,
अनकहे को सुनने की, लगन लगी है अब ।।
आज भले ढल जाये सूरज, पर रहे, ये साँझ यहीं,
लबरेज मौन है दरिया सा, बहने दे इसे, अब बांध नहीं ।।
महसूस मेरी धड़कन को तू करे, अपने जैसा ।।
इक शब्द भी ना लगे, ये सब कहने में,
सुकून मिले मुझे बस, तेरे पास रहने में ।।
तुम भी कहो, ना कुछ, तो भी मैं समझूँ सब,
अनकहे को सुनने की, लगन लगी है अब ।।
आज भले ढल जाये सूरज, पर रहे, ये साँझ यहीं,
लबरेज मौन है दरिया सा, बहने दे इसे, अब बांध नहीं ।।
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{लबरेज़ = लबालब (Brimful, Overflowing)}
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ये कविता हमारे परिवार में जुड़े एक नए शिशु (सदस्य) को समर्पित है। उसकी भाषा अभी तक सिर्फ 'मौन' है।
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Listen it here:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/labrez
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इसे उर्दू में यहाँ पढ़ें:
https://musaafiraana.blogspot.in/2017/08/labrez.html
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लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
5 अक्टूबर 2016
चेन्नई, भारत
लेखनी: अजय चहल 'मुसाफ़िर'
5 अक्टूबर 2016
चेन्नई, भारत
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