बुधवार, 30 अगस्त 2017

ना तुम मुझे इन्साँ कहो

इक गुजारिश तुमसे मेरी,
ना तुम मुझे इन्साँ कहो,
ना तुम मुझे इन्साँ कहो ।।

हैं करोड़ों अंध-भक्त मेरे,
हैं चेले बड़े सशक्त मेरे ।
हैं नेता, मंत्री बैठे मेरे द्वारे,
मेरी पंचवर्षीय कृपा से बनती सरकारें ।
गंदगी मुक्त, 'स्वच्छ भारत', है मेरा ही नारा,
शहंशाह भी तुम्हारा, मुरीद है हमारा ।

'रुमाल छू' से, मेरी डिस्क है खिसकी,
पर नए खेल, खिलाड़ी बनाता हूँ ।
'शिक्षा'और 'दीक्षा' से है प्रेम मुझे,
तभी स्कूल, कॉलेज चलाता हूँ ।
बस दसवीं जमात ही मुश्किल थी,
पर आज 'डॉक्टर' कहलाता हूँ ।

गर एक शब्द में कहना मुझको,
तुम खिलाड़ी मुझे 'महान' कहो ।
मैं भले ही कहता रहूँ,
ना तुम मुझे इन्साँ कहो ।।

नामकरण की पुड़िया से,
सबकी जात-पात मिटाता हूँ ।
छद्म नामों से ही सही,
पर अपनी जात बताता हूँ ।
नशा देकर, नाम सिमरण का,
सारे नशे दूर भगाता हूँ ।
अब भक्तों का हर रोग हरके,
खुद के गले लगाता हूँ ।
टेंशन, बी.पी, शुगर ने है,
जाने क्यूँ जकड़ा मुझको,
पर अभी रंगों की रफ़्तार में,
ढ़लती उम्र ने ना पकड़ा मुझको ।

शक्तिमान से करतब दिखाकर,
अपने बच्चों को बहलाता हूँ ।
गुफा के 'प्रेमी' अँधेरे में,
मेरी गुड़ियों को लोरी सुनाता हूँ ।
जो छीने मुझसे, मेरे नन्हें-मुन्नों को,
उन्हें ठिकाने लगाता हूँ ।
कहीं कामिनी के फेर में,
पथ से ना वे हट जायें ।
डेरे के मर्दों को रोंद,
उन्हें भगवान लायक बनाता हूँ ।

गॉड भले ही, ना कोई कहे,
उसका दूत जरूर कहलाता हूँ ।
राम और रहीम को रहे ऐतराज,
नाम संग इन्साँ जरुर लगाता हूँ ।
धन-धन करके धन जोड़ा है,
बहुत रिकॉर्डों को तोड़ा है ।
पर वक़्त नें ऐसी पलटी खाई,
मेरी कोई कला, मुझे बचा ना पाई ।

पर मैं आख़िरी नहीं इस कड़ी में,
जिसे तुम शैतान कहो ।
अपने गिरेबां में झाँक रे बन्दे,
तेरी खातिर हूँ, बस तेरे जैसा,
अब बेशक,
ना तुम मुझे इन्साँ कहो,
ना तुम मुझे इन्साँ कहो ।।


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Listen it here:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/insan
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काश ये सब, काल्पनिक होता,
तो कोई मजबूर दिल, इतना ना रोता ।।
 Forced to pen it by events happened during 25-28th Aug, 2017
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Disclaimer:
Institution(s) may not be bad but deification of (an) individual(s) is.
Caution may be the cure. May wisdom and peace prevail !!
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
चेन्नई, भारत







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