जो ना मिलें उनसे, तो सब्र ना हो,
मिलें गर चंद पल, तो खुद की खबर ना हो;
गैर मौजूदगी में, उनके अफसाने सोचते हैं,
सामने आने पे, बयाँ करने को लफ्ज़ खोजते हैं;
कल भी जब उनसे मुलाकात हुई थी,
तो उनकी पसंद-नापसंद पर बात हुई थी;
झटके से कह गए वो ,
कि बमुश्किल उन्हें कुछ पसंद आता है;
उलझ गए हम तो उलझन में,
कि क्या उनकी इस उलझन में, हमारा भी नाम आता है;
इस उलझने -सुलझने के चक्कर में,
पहाड़ सी रात का सवेरा हो जाता है;
कायल थे हम उनकी उलझन के,
क्या कोई फैसला इतनी जल्दी सुनाया जाता है I I
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लेखनी - अजय चहल
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