मंगलवार, 8 मार्च 2011

जय जय नारी

यत्र नारिस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता"
कितने सपष्ट शब्दों में व्यक्त है नारी की महत्ता.. 
अथाह सागर है प्रेम का नारी ह्रदय.. 
सदियों से वीरान्गानों की भूमिका में थी नारी..
गुरु नानक देव जी ने फरमाया है-
"सो क्यों मंदा आखिए, जित जन्मे राजान"

माँ ही तो सृष्टी की जननी है..कितनी ताकतवर व सम्मानित होती थी नारी हमारे भारतवर्ष में..
स्वयंवर रचे जाते थे उसके लिए..
परन्तु वक़्त की धार पे नारी का स्तर नीचे फिसलने लगा..
पित्रभगत व पुरुषप्रधान समाज ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए लील दिया इस जगतजननी को..
वर्तमान की बात करें तो भारत में 1000  पुरुषों की तुलना में मात्र 933 महिलाएं हैं और हरियाणा में तो सिर्फ 861 ..
आज हम नारी उत्थान का सवांग रचते हैं..
कुपोषण की शिकार पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा हैं..
महिलाओं की निरक्षरता सवाभाविक रूप से कम है..
घरेलू हिंसा,दहेज़ हत्या,यौन उत्पीडन,भ्रूण हत्या और भी ना जाने कितने पाप इस पुरूषप्रधान समाज में नारी झेल रही है..
नारी देह को व्यवसाय का रूप दे दिया गया है..

चंद महिलाओं की प्रगति की सुखद हवा में हम क्यों भूल जाते हैं के अधिकांश नारी आज भी पीड़ित है..
तरस रही है वो अपने उद्दार को..
हमारी सोच, विचार,दृष्टि व नियत सब मैली है स्त्री के प्रति..
ऊपर गिनाया गया कोई अपराध किसी पुरुष पर होते सुना है क्या?.
अगर नहीं तो फिर कहाँ प्रगति है मानवीय स्तर पर,इस स्त्री की..

पर इन सब का इलाज भी हम नारी से ही चाहते हैं..
हाँ,बिलकुल सत्य है के इस वक़्त नारी ही नारी का उद्दार कर सकती है..
सोचो व कर डालो बदलाव - मेरे वतन की वीरांगनाओं..

बजा दो बिगुल भेरी..शंखनाद का वक़्त हो चला है..

विज्ञानं की तरक्की तो यहाँ तक पहुँच गयी है की मेरुरज्जु से प्राप्त स्टेम सेल की मदद से संतान उत्पन्न करने के लिए भी पुरुष की जरूरत ही नहीं रहेगी..
एक अनुमान के मुताबिक 2088 तक इस पुरुष प्रधान समाज का स्वरूप बदलकर पूर्णत नारी प्रधान हो सकता है..
मगर प्रयास जरूरी है..आज से और अभी से..---

"नारी से नर, ना नर से नारी,
ताज है व्याकुल, के अब तेरी है बारी,
जय जय नारी...
जय जय नारी.."


-----
लेखनी - अजय चहल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें