सात वर्ष हैं बीत गए, जब दुनिया में आया था,
प्रथम पुत्र होने के नाते, आदि नाम कहलाया था।
रात-रात भर हल्ला करके, मम्मी को जगाया था,
कलटी मारी और धड़ाम !, सारा घर दौड़ाया था।
घुटनों के बल रेंग-रेंग कर, अपने पैरों तक आया था,
अखबारों का शिकार किया तो, स्कूल में भिजवाया था।
कच्ची जुबान ने पकते-पकते, बहुतों को हँसाया था,
आँगन वाले अमरुद को, पटियाला चौंक बनाया था।
मासूम सवालों के नाम पर, सबका दिमाग पकाया था,
बस पापा को छोड़कर, सबने मौन मोहन सिंह बनाया था।
धुँधली होती गर यादें उसकी, जो बचपन अब तक बिताया था,
फिर से जीने उसी बचपन को, अब आरव भाई आया था।
भूला हुआ सब याद है आया, आरव ने वही दोहराया था,
उम्र से पहले हुआ जिम्मेदार, अब बड़ा भाई कहलाया था।
भर रहा अब दामन हर-पल, बेशक़ खाली हाथ तू लाया था,
सफ़र अभी है लम्बा 'मुसाफ़िर', जिसे तय करने तू आया था।
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आदि के जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित समर्पित !
Listen it on sound cloud:
https://soundcloud.com/ajay-chahal/saat-varsh
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
भारत
प्रथम पुत्र होने के नाते, आदि नाम कहलाया था।
रात-रात भर हल्ला करके, मम्मी को जगाया था,
कलटी मारी और धड़ाम !, सारा घर दौड़ाया था।
घुटनों के बल रेंग-रेंग कर, अपने पैरों तक आया था,
अखबारों का शिकार किया तो, स्कूल में भिजवाया था।
कच्ची जुबान ने पकते-पकते, बहुतों को हँसाया था,
आँगन वाले अमरुद को, पटियाला चौंक बनाया था।
मासूम सवालों के नाम पर, सबका दिमाग पकाया था,
बस पापा को छोड़कर, सबने मौन मोहन सिंह बनाया था।
धुँधली होती गर यादें उसकी, जो बचपन अब तक बिताया था,
फिर से जीने उसी बचपन को, अब आरव भाई आया था।
भूला हुआ सब याद है आया, आरव ने वही दोहराया था,
उम्र से पहले हुआ जिम्मेदार, अब बड़ा भाई कहलाया था।
भर रहा अब दामन हर-पल, बेशक़ खाली हाथ तू लाया था,
सफ़र अभी है लम्बा 'मुसाफ़िर', जिसे तय करने तू आया था।
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आदि के जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित समर्पित !
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
भारत
आदि-आरव |
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