कभी कभी हम, अजीब पशो-पेश में रहते हैं,
जब वो नशेमन आँखों वाले, हमें संगदिल कहते हैं ।
शिकायत है, करीब होने पर तो हम, गूँगे से रहते हैं,
पर दूर जाते ही, उनकी तारीफ़ में शायरी कैसे कहते हैं ?
अब तुम ही कहो मुसाफ़िर, हम कैसे ये गुनाह कबूलें,
सटकर बैठे, रहबर की तारीफ़ में, कैसे ये होंठ खुलें ?
लार लपेटे मेरे कच्चे लफ्ज़, इस हल्क से उस हल्क को बहते हैं,
बेबस मेरे होठों को हरदम वो, होठों में अपने, जकड़े जो रहते हैं।
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रहबर = रास्ता बताने वाला (Guide)
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लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
मद्रास, भारत ।
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इसे उर्दू में यहाँ पढ़ें:
https://musaafiraana.blogspot.in/2017/08/rahbar.html
जब वो नशेमन आँखों वाले, हमें संगदिल कहते हैं ।
शिकायत है, करीब होने पर तो हम, गूँगे से रहते हैं,
पर दूर जाते ही, उनकी तारीफ़ में शायरी कैसे कहते हैं ?
अब तुम ही कहो मुसाफ़िर, हम कैसे ये गुनाह कबूलें,
सटकर बैठे, रहबर की तारीफ़ में, कैसे ये होंठ खुलें ?
लार लपेटे मेरे कच्चे लफ्ज़, इस हल्क से उस हल्क को बहते हैं,
बेबस मेरे होठों को हरदम वो, होठों में अपने, जकड़े जो रहते हैं।
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अजय चहल 'मुसाफ़िर'
मद्रास, भारत ।
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