बुधवार, 19 जुलाई 2017

रहबर

कभी कभी हम, अजीब पशो-पेश में रहते हैं,
जब वो नशेमन आँखों वाले, हमें संगदिल कहते हैं ।

शिकायत है, करीब होने पर तो हम, गूँगे से रहते हैं,
पर दूर जाते ही, उनकी तारीफ़ में शायरी कैसे कहते हैं ?

अब तुम ही कहो मुसाफ़िर, हम कैसे ये गुनाह कबूलें,
सटकर बैठे, रहबर की तारीफ़ में, कैसे ये होंठ खुलें ?

लार लपेटे मेरे कच्चे लफ्ज़, इस हल्क से उस हल्क को बहते हैं,
बेबस मेरे होठों को हरदम वो, होठों में अपने, जकड़े जो रहते हैं।

----------
रहबर = रास्ता बताने वाला (Guide)
----------
लेखनी:
अजय चहल 'मुसाफ़िर'
मद्रास, भारत ।
-----------
इसे उर्दू में यहाँ पढ़ें:
https://musaafiraana.blogspot.in/2017/08/rahbar.html

Picture source: pinterest.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें