बुधवार, 11 नवंबर 2015

मैं पैसा हूँ


मत उलझो कि मैं कैसा हूं ?
मैं तो बस मेरे ही जैसा हूं।

मृत् कंकाल सी देह या हो फैला उदर,
कारण मैं ही हूँ, कहो यमराज का भैंसा हूँ !
भूल हुई है मानव तुझसे,
मेरे अक्श को तन देकर,
भूल गया जो तू खुद को भी,
ना दानव हूँ, ना ही ईश्वर,
बस चकाचोंध में, तेरी छाती रौंदती,
माया की काया जैसा हूँ,

ये चिर पहेली ना बुझेगी, तुझसे,
कि मैं कैसा हूँ, क्योंकि,
मैं तो बस पैसा हूँ ।
बस मेरे ही जैसा हूं।।

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लेखनी - अजय चहल 'मुसाफ़िर'
चेन्नई, भारत

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